| | | |
| 1 | | | ألا | يا | نسيمَ | الرّيح | بلّغْ | مَهَا | نَجدِ |
| *** | | بأنّي | على | ما | تعلَمُونَ | من | العَهْدِ |
| |
| 2 | | | وقلْ | لفتاةِ | الحيِّ | موعدنا | الحمى |
| *** | | غُدَيّةَ | يَوْمِ | السّبْتِ | عندَ | رُبى | نجدِ |
| |
| 3 | | | على | الرّبوَةِ | الحمرَاءِ | من | جانبِ | الضَّوَى، |
| *** | | وعَنْ | أيْمنِ | الأفلاجِ | والعَلَمِ | الفرْدِ |
| |
| 4 | | | فإنْ | كَانَ | حَقّاً | ما | تَقُولُ، | وعندَها |
| *** | | إليَّ | منَ | الشَّوقِ | المبرِّحِ | ما | عندي |
| |
| 5 | | | إلَيْهَا، | فَفي | حَرِّ | الظَّهِيرَةِ | نَلتَقي |
| *** | | بخيمتها | سرَّاً | على | أصدقِ | الوعدِ |
| |
| 6 | | | فتلقي | ونلقي | ما | نلاقي | منَ | الهوى |
| *** | | ومِنْ | شِدّةِ | البَلوَى | ومن | ألم | الوَجْدِ |
| |
| 7 | | | أأضْغَاثُ | أحْلامٍ، | أبُشْرَى | مَنَامَةٍ، |
| *** | | أنُطقُ | زَمانٍ | كان | في | نُطقِهِ | سَعدي |
| |
| 8 | | | لعلّ | الّذي | ساقَ | الأماني | يَسوقُها |
| *** | | عياناً | فيهدى | روضها | لي | جنى | الوردِ |
| |