| | الجود أولى به والفقر أولى بنا |
1 | | الجودُ | أولى | بهِ | والفقرُ | أولى | بنا |
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2 | | ما | في | الوجودِ | سوى | فقرٍ | وليسَ | لهُ |
| *** | ضدٌّ | يسمونهُ | في | الاصطلاحِ | غنى |
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3 | | أينَ | الغنى | وأنا | بالذاتِ | أقبلُ | ما |
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4 | | فالكونُ | مني | ومنهُ | فاعتبرْ | عجباً |
| *** | هذا | الذي | قلتهُ | قدْ | كانَ | قبلُ | بنا |
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6 | | قد | ارتبطنا | لأمر | لا | انفكاكَ | لنا |
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7 | | مثل | النتيجة | كان | الكونُ | عن | عدمٍ |
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8 | | عينُ | النكاحِ | بدا | بالكشفِ | يشهدُهُ |
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9 | | | *** | كالنفس | منه | إذا | سوّى | لها | البدنا |
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10 | | والنفسُ | في | الكونِ | عنْ | جسمٍ | وعنْ | نفسٍ |
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11 | | فلمْ | أزلْ | لوجودِ | الجودِ | أطلبهُ |
| *** | فعلةُ | الفقرِ | فينا | علةُ | الزمنا |
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12 | | لوْ | لمْ | يكنْ | لمْ | أكنْ | لوْ | لمْ | أرَ | لمْ | يرَ |
| *** | فالكونُ | مني | بهِ | والعلمُ | منهُ | بنا |
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13 | | | *** | نصٌّ | جليٌّ | حكاهُ | في | القرآنِ | لنا |
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14 | | في | سورةِ | الأنبياءِ | الزهرِ | في | زمرٍ |
| *** | أتى | بحرفِ | امتناعٍ | واضحاً | علنا |
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16 | | | *** | في | ناظرِ | العينِ | لمْ | يدركْ | بهِ | غبنا |
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18 | | مثل | المعاني | التي | التجميل | جسدها |
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