| | الحمد لله جلّ الله من خالق |
1 | | الحمدُ | للهِ | جلَّ | اللهُ | منْ | خالقٍ |
| *** | وهوَ | العليمُ | بنا | الفاتِقُ | الراتقْ |
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2 | | قدْ | ضمَّ | شملي | بهِ | إذْ | كنتُ | في | عدمٍ |
| *** | لا | علمَ | عندي | بمخلوقٍ | ولا | خالقْ |
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3 | | | *** | علمت | بالكونِ | قطعاً | أنه | الخالق |
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4 | | | *** | إلا | القبولُ | فأنى | فيهِ | بالصادقْ |
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5 | | | *** | | |
6 | | | *** | | |
7 | | | *** | | |
8 | | | *** | | |
9 | | | *** | | |
10 | | | *** | للناظرين | إليه | الهائمُ | العاشق |
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11 | | | *** | لهمْ | ولكنهمْ | أعماهمُ | الطارقْ |
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12 | | | *** | وهكذا | جاءَهم | في | سورةِ | الطارقْ |
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13 | | | *** | | |
14 | | أين | الصباحُ | وأين | الحب | فاعتبروا |
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15 | | إنَّ | الصباحُ | من | أجلِ | العينِ | أبرزهُ |
| *** | والحبُّ | للروحِ | فانظر | حالةَ | الفارقْ |
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16 | | فالحبُّ | أشرفُ | منْ | عينِ | الصباحِ | فكنْ |
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17 | | | *** | تعدلْ | بهِ | فلقاً | فلستَ | بالصادقْ |
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18 | | إنَّ | الصباحَ | قديمٌ | للنوى | وكذا |
| *** | للحبِّ | وهو | لهذا | الهائم | الرامق |
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19 | | | *** | نورٍ | تولدَ | عنْ | عنايةِ | الرازقْ |
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20 | | | *** | لذا | هوَ | الدهرُ | من | أسمائِهِ | الفائق |
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21 | | إنْ | لم | أكن | سابقا | في | كلِّ | ما | نطقتْ |
| *** | به | التراجمُ | كنت | المقتفي | اللاحق |
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22 | | إني | لأقذفُ | بالحقِّ | المبينِ | على |
| *** | ما | كانَ | منْ | باطلٍ | ليمسي | الزاهقْ |
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