| | ألا إنني العبد المليك السميدع |
1 | | ألا | إنني | العبدُ | المليكُ | السميدَعُ |
| *** | ولِ | منزلٌ | من | رحمةِ | اللهِ | أوسعُ |
| |
2 | | | *** | وهذا | غريبٌ | في | العلومِ | فاجمعوا |
| |
3 | | | *** | وليسَ | لهُ | في | عالمِ | الفكرِ | موضعُ |
| |
4 | | لقد | وسعَ | الحقُّ | المبينُ | بصورة |
| *** | إلى | مجدِها | تعنو | الوجوهُ | وتخضعُ |
| |
5 | | أنا | الأزليّث | العينُ | والمحدثُ | الذي |
| *** | | |
6 | | | *** | أنا | العالم | العلويّ | بل | أنا | أرفع |
| |
7 | | أنا | العربيّ | الحاتميّ | أخو | الندى |
| *** | إلى | حضرتي | تغدو | المطيُّ | وترجعُ |
| |
8 | | | *** | | |
9 | | لنا | في | زمانِ | الخصبِ | ملهىً | وملعبٌ |
| *** | وفي | وقتِ | جدبِ | الأرضِ | مرعىً | ومرتعُ |
| |
10 | | | *** | أنا | فضلُهُ | الماضي | الذي | ليسَ | يرجعُ |
| |
11 | | أنا | المسجدُ | الأقصى | أنا | الحرم | الذي |
| *** | إلى | بيتهِ | تعدُو | النياق | وتسرعُ |
| |
12 | | إلى | مهبطِ | الأسماءِ | تقنعُ | أروساً |
| *** | ونحو | استواءِ | الأرض | تسمو | وترفع |
| |