| | ألا إنني أرجو عوارف فضل من |
1 | | | *** | يكون | له | التحميد | في | اليُسر | والعُسرِ |
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2 | | | *** | على | كلِّ | حالٍ | منهُ | في | نفعٍ | أو | ضرِّ |
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3 | | | *** | كما | جاءَ | في | الأنعامِ | والفضلِ | في | اليسرِ |
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4 | | بذا | جاءتِ | الأخبارُ | في | حمدِ | سيدٍ |
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5 | | | *** | | |
6 | | | *** | تلوناه | في | الأحزاب | في | محكم | الذكر |
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9 | | فإنَّ | الذي | يدعى | عنِ | الخلقِ | في | غنى |
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10 | | ولي | منه | في | الأحوال | صحوٌ | وسَكرةٌ |
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11 | | فأصبحوا | إذا | عمَّ | التجلي | وجودَهُ |
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12 | | | *** | | |
13 | | | *** | وشعري | الذي | أبديهِ | ما | هوَ | من | شعري |
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15 | | | *** | إذا | ما | رأيتَ | الحقَّ | إني | في | خسرِ |
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16 | | فما | الناسُ | إلا | بينَ | هادٍ | ومهتدٍ |
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17 | | وهذي | إشاراتٌ | لمنْ | كانَ | عالماً |
| *** | بما | قلته | في | السرِّ | كانَ | أوْ | الجهرِ |
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18 | | | *** | شرَعتَ | من | الإيمان | بالنهي | والأمر |
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19 | | | *** | وما | عندنا | إلا | التبرِّي | من | الكفر |
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20 | | لقد | قررَ | الإيمانُ | عندي | حقائقاً |
| *** | تنافي | براهينَ | النهيِ | من | ذوي | الفكرِ |
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21 | | | *** | مطالعها | في | القلبِ | كالأنجمِ | الزهرِ |
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22 | | | *** | من | العلم | بالله | المقرَّر | في | صدري |
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